Monday, September 5, 2011

गुरु को समर्पित...

गुरु को समर्पित...

गुरु मानस पिता, शिष्य मानस पुत्र/पुत्री।
जहां शिष्य स्नेह का पात्र, और गुरु को श्रद्धा सम्मान। 

जहां होती भावों की भाषा,
और अंतर मौन-अभिव्यंजना।
गुरु-शिष्य में संवेदना ,
जोड़ देता कुछ यूँ... 
कि अंधकार को हर लेने का प्रकाश,
उसमें स्वतः फैलता है।

गुरु, वही है सच्चा 
जो सिर्फ पढ़ाता नहीं, बनाता है।

चरित्र आभूषण-सा गढ़कर, 
ज्ञान-ज्योति जलाकर,
उसकी क्षमताओं को निखारकर,
कर्त्तव्य का बोध कराकर, 
निर्जन वन में भी, जीने का विश्वास भर देता है।
जिसके डांट-डपट में है प्रेम सुवासित, 
और जिसका आशीर्वाद... 
ढृढ़ संक्लप भर देता है, निरंतर गतिमान रहने को।

मैं...
चाहती हूँ अपने गुरु से कुछ ऐसा ही ... 
जो मेरे भूलों का बोध कराकर,
क्षमा कर सके। 
ताकि मैं पश्चाताप की अग्नि में
न जलूं, न अपनी ऊर्जा क्षय करूं,
बल्कि, सुधार लाऊं स्वयं में।
हाँ, जो मुझे जागरूक बनाये,

मुझे दिशा दिखाये।
ताकि कल मै ‘इंसान’ बन पाऊं।

10 comments:

विभूति" said...

गुरु को समर्पित सुन्दर रचना....

संजय भास्‍कर said...

खूबसूरत एहसास लिए सुन्दर रचना

मनोज कुमार said...

गुरु को सादर नमन।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मुझे दिशा दिखाये।
ताकि कल मै ‘इंसान’ बन पाऊं।

Khoob ....Behtreen Rachna

जन सुनवाई @legalheal said...

सुंदर आलेख और शुभकामनाएं.

neelima garg said...

मुझे दिशा दिखाये।
ताकि कल मै ‘इंसान’ बन पाऊं। ..it says a lot..

संजय भास्‍कर said...

धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए

Suman Dubey said...

सुजाता जी नमस्कार्। सुन्दर प्रस्तुति गुरु के बारे में ।जयहिन्द्।

प्रेम सरोवर said...

गुरू को सादर नमन । धन्यवाद ।

सहज समाधि आश्रम said...

very nice post

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